कबीरदास का पोयम। 500+ Kabir das poems in hindi।

भारत में बहुत से लोग आज भी कबीर दास के दोहे को काफी मजे में सुनते है, इसलिए आज के इस लेख में हम Kabir das poems in hindi और Kabir das small poems in hindi के बारे में डिटेल में जानकरी देने वाले है।

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क्योकि आज के इस आर्टिकल में हम  कबीर दास के दोहे और कबीर दास के पोयम के बारे में आप लोगो को जानकारी देने वाला हूँ, इसलिए आप सभी से निवेदन है, कि आप लोग इस लेख को अंत तक जरुर पढ़े।

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कबीरदास के दोहे। कबीरदास पोयम इन हिंदी। kabirdas ke dohe। kabir das poems in hindi।

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जो तुम तुम ना रहे
जो तुम तुम ना रहे, मैं हूँ वहीं हूँ।
जो मैं मैं ना रहा, तुम हो वहीं हो।।


चाँदनी चाँद से होती है
चाँदनी चाँद से होती है, सुरज सूर्य से होता है।
मोहब्बत एक दूसरे से होती है, जैसे सांसों का मिलना होता है।।


माला फेरत जुग भया
माला फेरत जुग भया, फिर का होगा भला।
दोहरा दोस्ती का सूत्र, पाटा-पाटा जोड़ा कर।।


जब मैं था तब हरि नहीं
जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहीं।
सब अंधेरा मिट गया, दुख दर्द जब जग में राहीं।।


पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ
पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।।


बुरा जो देखन मैं चला
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो मन खोजा अपना, तो मुझसे बुरा न कोय।।


प्रेम गली इतराया
प्रेम गली इतराया, रोग लगाया खाय।
चिकित्सा सम ना आई, फिर अन्य दोष लगाय।।


मन लागो मेरो यार फकीरी में
मन लागो मेरो यार फकीरी में।
मगर यार बिना यह गम अधीरी में।।


साधो रे ये मुरद़ मत रखियो
साधो रे ये मुरद़ मत रखियो, कोई न जाने रे।
आपणा उद्धार होय, तो दूसरो का उधार होय।।


जो तोरों प्रेम खेल आखेर
जो तोरों प्रेम खेल आखेर, सो अधम गणियो चरावें।
तोड़ी तोड़ी फिरत फिरत, तनिक ना मिलियो पावें।।


सब धर्मों में गूंजे बाणी
सब धर्मों में गूंजे बाणी, एक ही पंथ चलावो।
नाम जपो और वंदन करो, मन निर्मल भजन ध्यावो।।


ज्ञानी अन्ध नहीं
ज्ञानी अन्ध नहीं, सब बिनु बिरले आप देखे।
ज्ञान बिनु पंडित कैसे, मूरख बिनु आप कैसे ज्ञानी।।


जीवन तू नीरा है
जीवन तू नीरा है, जीवन जीवन का धीरा है।
जिसको तुम मन से चाहो, उसे तुम अपना लीरा है।।


सुख दुख दोनों सम करे
सुख दुख दोनों सम करे, जीते जी बस नाम उपारे।
आदि मध्य अंति नहीं है, जहाँ सब एक नाम ध्यावे।।


साधो ये मुरली बजाई
साधो ये मुरली बजाई, मन जीते दुःख हराये।
करुणा रस पिलाई, सब जग में अमित उपकार कीने।।


ज्ञानी को कहिए कोई
ज्ञानी को कहिए कोई, सुन ले यह विचार।
पाँच विकार काम क्रोध मद मत्सर लोभ हैं, इन से जग को बचाना है।।


राम नाम बिना कौन हरे
राम नाम बिना कौन हरे, दुख में सुमिरन सब करे।
राम नाम लगि रहत होय, तो बंधु बैरी सब टरे।।


साधो रे ये तन दुर्बल
साधो रे ये तन दुर्बल, मन भी अश्रुपूर्ण है।
रत्न जड़ माला न जानत, नाम जाप में डूबा है।।


समझ बुझ बोले सबही
समझ बुझ बोले सबही, गुरु गोविन्द दोऊ खड़े।
काके लागूँ पाय राखूँ, बाँके नहीं देरी डारे।।


जो तू चाहे तो जाग सके
जो तू चाहे तो जाग सके, जो तू चाहे सो रात।
मन रंगे हाथ चले तेरे, तुझसे कुछ न छुटे बात।।


बड़ा हुआ तो क्या हुआ
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पूँछ कोई चुहारे।
दौड़त ही फिरती जाती, और करते रहते प्यारे।।


जीवन दो पल का
जीवन दो पल का घमांड न कर, मौत का कल भी नहीं।
मान लो जग को एक सपना, नाम सुनाया नहीं।।


गुरु गोविन्द दोऊ खड़े
गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूँ पांय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविन्द दियो मिलाय।।


जो अपने से जो जाने
जो अपने से जो जाने, वो है बड़ा दाता।
मिट जाये जो सम्बन्ध सब के, फिर क्या करेगा राजा।।


जो तुम तोरो तो जग माहीं
जो तुम तोरो तो जग माहीं, पाप तुम्हारा होय।
आवत ही करो भला, अचरज न कोय।।


साधो रे यह तन मन दोले
साधो रे यह तन मन दोले, मेरो रसना गावत है।
मोहे पाग धरो घनश्याम, दिन दिन ही बढ़ात है।।


सत्य की खोज
सत्य की खोज में हमेशा चलो, कर्म से न डरो कुछ नहीं होता फलो।
हाथों में हाथ लेकर, चलो इक पथ पर तुम।
जो कुछ है सब तेरा है, अंदर बाहर तुम्हारा है।।


दुःख में सुमिरन सब करे
दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, दुःख काटे उस कोय।।


कबीर जी की कविताएं :

तेरा मेरा मनुवां।

तेरा मेरा मनुवां कैसे एक होइ रे ।

मै कहता हौं आँखन देखी, तू कहता कागद की लेखी ।
मै कहता सुरझावन हारी, तू राख्यो अरुझाई रे ॥

मै कहता तू जागत रहियो, तू जाता है सोई रे ।
मै कहता निरमोही रहियो, तू जाता है मोहि रे ॥

जुगन-जुगन समझावत हारा, कहा न मानत कोई रे ।
तू तो रंगी फिरै बिहंगी, सब धन डारा खोई रे ॥

सतगुरू धारा निर्मल बाहै, बामे काया धोई रे ।
कहत कबीर सुनो भाई साधो, तब ही वैसा होई रे ॥


बहुरि नहिं आवना या देस।

जो जो गए बहुरि नहि आए, पठवत नाहिं सॅंस ॥ १॥

सुर नर मुनि अरु पीर औलिया, देवी देव गनेस ॥ २॥

धरि धरि जनम सबै भरमे हैं ब्रह्मा विष्णु महेस ॥ ३॥

जोगी जङ्गम औ संन्यासी, दीगंबर दरवेस ॥ ४॥

चुंडित, मुंडित पंडित लोई, सरग रसातल सेस ॥ ५॥

ज्ञानी, गुनी, चतुर अरु कविता, राजा रंक नरेस ॥ ६॥

कोइ राम कोइ रहिम बखानै, कोइ कहै आदेस ॥ ७॥

नाना भेष बनाय सबै मिलि ढूऊंढि फिरें चहुँ देस ॥ ८॥

कहै कबीर अंत ना पैहो, बिन सतगुरु उपदेश ॥ ९॥


बीत गये दिन भजन बिना रे।

बीत गये दिन भजन बिना रे ।
भजन बिना रे, भजन बिना रे ॥

बाल अवस्था खेल गवांयो ।
जब यौवन तब मान घना रे ॥

लाहे कारण मूल गवाँयो ।
अजहुं न गयी मन की तृष्णा रे ॥

कहत कबीर सुनो भई साधो ।
पार उतर गये संत जना रे ॥


नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार।

नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार।
साहिब तुम मत भूलियो लाख लो भूलग जाये।

हम से तुमरे और हैं तुम सा हमरा नाहिं।
अंतरयामी एक तुम आतम के आधार।

जो तुम छोड़ो हाथ प्रभुजी कौन उतारे पार।
गुरु बिन कैसे लागे पार।

मैं अपराधी जन्म को मन में भरा विकार।
तुम दाता दुख भंजन मेरी करो सम्हार।

अवगुन दास कबीर के बहुत गरीब निवाज़।
जो मैं पूत कपूत हूं कहौं पिता की लाज।
गुरु बिन कैसे लागे पार ॥


राम बिनु तन को ताप न जाई।

जल में अगन रही अधिकाई ॥
राम बिनु तन को ताप न जाई ॥

तुम जलनिधि मैं जलकर मीना ।
जल में रहहि जलहि बिनु जीना ॥
राम बिनु तन को ताप न जाई ॥

तुम पिंजरा मैं सुवना तोरा ।
दरसन देहु भाग बड़ मोरा ॥
राम बिनु तन को ताप न जाई ॥

तुम सद्गुरु मैं प्रीतम चेला ।
कहै कबीर राम रमूं अकेला ॥
राम बिनु तन को ताप न जाई ॥


करम गति टारै नाहिं टरी।

मुनि वसिष्ठ से पण्डित ज्ञानी, सिधि के लगन धरि ।
सीता हरन मरन दसरथ को, बनमें बिपति परी ॥ १॥

कहॅं वह फन्द कहाँ वह पारधि, कहॅं वह मिरग चरी ।
कोटि गाय नित पुन्य करत नृग, गिरगिट-जोन परि ॥ २॥

पाण्डव जिनके आप सारथी, तिन पर बिपति परी ।
कहत कबीर सुनो भै साधो, होने होके रही ॥ ३॥


भजो रे भैया राम गोविंद हरी।

राम गोविंद हरी भजो रे भैया राम गोविंद हरी ॥
जप तप साधन नहिं कछु लागत, खरचत नहिं गठरी ॥

संतत संपत सुख के कारन, जासे भूल परी ॥
कहत कबीर राम नहीं जा मुख, ता मुख धूल भरी ॥


दिवाने मन, भजन बिना दुख पैहौ।

पहिला जनम भूत का पै हौ, सात जनम पछिताहौउ।
काँटा पर का पानी पैहौ, प्यासन ही मरि जैहौ ॥ १॥

दूजा जनम सुवा का पैहौ, बाग बसेरा लैहौ ।
टूटे पंख मॅंडराने अधफड प्रान गॅंवैहौ ॥ २॥

बाजीगर के बानर होइ हौ, लकडिन नाच नचैहौ ।
ऊॅंच नीच से हाय पसरि हौ, माँगे भीख न पैहौ ॥ ३॥

तेली के घर बैला होइहौ, आॅंखिन ढाँपि ढॅंपैहौउ ।
कोस पचास घरै माँ चलिहौ, बाहर होन न पैहौ ॥ ४॥

पॅंचवा जनम ऊॅंट का पैहौ, बिन तोलन बोझ लदैहौ ।
बैठे से तो उठन न पैहौ, खुरच खुरच मरि जैहौ ॥ ५॥

धोबी घर गदहा होइहौ, कटी घास नहिं पैंहौ ।
लदी लादि आपु चढि बैठे, लै घटे पहुँचैंहौ ॥ ६॥

पंछिन माँ तो कौवा होइहौ, करर करर गुहरैहौ ।
उडि के जय बैठि मैले थल, गहिरे चोंच लगैहौ ॥ ७॥

सत्तनाम की हेर न करिहौ, मन ही मन पछितैहौउ ।
कहै कबीर सुनो भै साधो, नरक नसेनी पैहौ ॥ ८॥


झीनी झीनी बीनी चदरिया।

काहे कै ताना काहे कै भरनी
कौन तार से बीनी चदरिया

इडा पिङ्गला ताना भरनी
सुखमन तार से बीनी चदरिया

आठ कँवल दल चरखा डोलै
पाँच तत्त्व गुन तीनी चदरिया

साँ को सियत मास दस लागे
ठोंक ठोंक कै बीनी चदरिया

सो चादर सुर नर मुनि ओढी
ओढि कै मैली कीनी चदरिया

दास कबीर जतन करि ओढी
ज्यों कीं त्यों धर दीनी चदरिया


केहि समुझावौ सब जग अन्धा।

इक दुइ होयॅं उन्हैं समुझावौं,
सबहि भुलाने पेटके धन्धा ।

पानी घोड पवन असवरवा,
ढरकि परै जस ओसक बुन्दा ॥ १॥

गहिरी नदी अगम बहै धरवा,
खेवन- हार के पडिगा फन्दा ।

घर की वस्तु नजर नहि आवत,
दियना बारिके ढूँढत अन्धा ॥ २॥

लागी आगि सबै बन जरिगा,
बिन गुरुज्ञान भटकिगा बन्दा ।

कहै कबीर सुनो भाई साधो,
जाय लिङ्गोटी झारि के बन्दा ॥ ३॥


काहे री नलिनी तू कुमिलानी।

तेरे ही नालि सरोवर पानी
जल में उतपति जल में बास, जल में नलिनी तोर निवास

ना तलि तपति न ऊपरि आगि, तोर हेतु कहु कासनि लागि
कहे ‘कबीर जे उदकि समान, ते नहिं मुए हमारे जान


मन मस्त हुआ तब क्यों बोलै।

हीरा पायो गाँठ गँठियायो, बार-बार वाको क्यों खोलै।
हलकी थी तब चढी तराजू, पूरी भई तब क्यों तोलै।

सुरत कलाली भई मतवाली, मधवा पी गई बिन तोले।
हंसा पायो मानसरोवर, ताल तलैया क्यों डोलै।

तेरा साहब है घर माँहीं बाहर नैना क्यों खोलै।
कहै ‘कबीर सुनो भई साधो, साहब मिल गए तिल ओलै॥


रहना नहिं देस बिराना है।

यह संसार कागद की पुडिया, बूँद पडे गलि जाना है।
यह संसार काँटे की बाडी, उलझ पुलझ मरि जाना है॥

यह संसार झाड और झाँखर आग लगे बरि जाना है।
कहत ‘कबीर सुनो भाई साधो, सतुगरु नाम ठिकाना है॥


कबीर की साखियाँ।

कस्तूरी कुँडल बसै, मृग ढ़ुढ़े बब माहिँ
ऎसे घटि घटि राम हैं, दुनिया देखे नाहिँ

प्रेम ना बाड़ी उपजे, प्रेम ना हाट बिकाय
राजा प्रजा जेहि रुचे, सीस देई लै जाय

माला फेरत जुग गाया, मिटा ना मन का फेर
कर का मन का छाड़ि, के मन का मनका फेर

माया मुई न मन मुआ, मरि मरि गया शरीर
आशा तृष्णा ना मुई, यों कह गये कबीर

झूठे सुख को सुख कहे, मानत है मन मोद
खलक चबेना काल का, कुछ मुख में कुछ गोद

वृक्ष कबहुँ नहि फल भखे, नदी न संचै नीर
परमारथ के कारण, साधु धरा शरीर

साधु बड़े परमारथी, धन जो बरसै आय
तपन बुझावे और की, अपनो पारस लाय

सोना सज्जन साधु जन, टुटी जुड़ै सौ बार
दुर्जन कुंभ कुम्हार के, एके धकै दरार

जिहिं धरि साध न पूजिए, हरि की सेवा नाहिं
ते घर मरघट सारखे, भूत बसै तिन माहिं

मूरख संग ना कीजिए, लोहा जल ना तिराइ
कदली, सीप, भुजंग-मुख, एक बूंद तिहँ भाइ

तिनका कबहुँ ना निन्दिए, जो पायन तले होय
कबहुँ उड़न आखन परै, पीर घनेरी होय

बोली एक अमोल है, जो कोइ बोलै जानि
हिये तराजू तौल के, तब मुख बाहर आनि

ऐसी बानी बोलिए,मन का आपा खोय
औरन को शीतल करे, आपहुँ शीतल होय

लघता ते प्रभुता मिले, प्रभुत ते प्रभु दूरी
चिट्टी लै सक्कर चली, हाथी के सिर धूरी

निन्दक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय
बिन साबुन पानी बिना, निर्मल करे सुभाय

मानसरोवर सुभर जल, हंसा केलि कराहिं
मुकताहल मुकता चुगै, अब उड़ि अनत ना जाहिं


हमन है इश्क मस्ताना।

हमन है इश्क मस्ताना, हमन को होशियारी क्या ?
रहें आजाद या जग से, हमन दुनिया से यारी क्या ?

जो बिछुड़े हैं पियारे से, भटकते दर-ब-दर फिरते,
हमारा यार है हम में हमन को इंतजारी क्या ?

खलक सब नाम अनपे को, बहुत कर सिर पटकता है,
हमन गुरनाम साँचा है, हमन दुनिया से यारी क्या ?

न पल बिछुड़े पिया हमसे न हम बिछड़े पियारे से,
उन्हीं से नेह लागी है, हमन को बेकरारी क्या ?

कबीरा इश्क का माता, दुई को दूर कर दिल से,
जो चलना राह नाज़ुक है, हमन सिर बोझ भारी क्या?


कबीर दास से सम्बंधित पूछे जाने वाले प्रश्न-

  1. कबीर दास कौन थे और उनकी जीवनी क्या है?

    Ans- कबीर दास एक संत थे जो 15वीं और 16वीं शताब्दी में भारतीय उपमहाद्वीप में रहते थे। वे भक्ति के साथ एक सामाजिक विक्रमी थे जो धर्म, समाज और राजनीति के खिलाफ लड़े थे। उनके दोहे और भजनों के माध्यम से वे लोगों के मनोवृत्ति को स्पष्ट करते थे।

  2. कबीर दास के दोहे कौन से हैं और उनके अर्थ क्या हैं?

    Ans- कबीर दास ने कई दोहे लिखे हैं जो अपने समझदार बुद्धि, स्पष्ट विचार और सामाजिक निंदा के लिए जाने जाते हैं। ये उनके दोहे थोड़े संक्षेप में होते हैं और उनके विवेक, नैतिकता और धर्म से संबंधित होते हैं। कुछ उनके प्रसिद्ध दोहों में शामिल हैं।

  3. कबीर दास ने कौन से मूल्यों की प्रतिपादन की थी?

    Ans- कबीर दास ने जीवन के कई मूल्यों की प्रतिपादन की थी, जैसे कि समझदारी, नैतिकता, समता, सामाजिक न्याय, धर्म और भाईचारा। उनके दोहे इन मूल्यों को स्पष्ट करते हैं और लोगों को एक सही दिशा में चलने के लिए प्रेरित करते हैं।

  4. क्या कबीर दास की कोई ग्रंथ लिखी गई है?

    Ans- कबीर दास ने कोई अपनी रचनाओं का संग्रह नहीं किया था, लेकिन उनके दोहे, भजन और विचार विभिन्न पुस्तकों में संग्रहित हैं। उनके दोहों को एक संस्कृति का अंग माना जाता है।

  5. कबीर दास कौन थे?

    Ans- कबीर दास भारत के मशहूर संत, कवि और समाज सुधारक थे। वे 15वीं शताब्दी के उत्तरी भारत में जन्मे थे।

निष्कर्ष- आज हमने क्या सिखा-

आज के इस आर्टिकल में हमने 100+ Kabir das poems in hindi और Kabir das small poems in hindi के बारे में जानकारी दी है।

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